सर्वप्रथम ई-कांवड़ यात्रा ऐप अपने मोबाइल में डाउनलोड करें। इस ऐप को आप गूगल प्ले स्टोर, ऐपल ऐप स्टोर या ई-कांवड़ यात्रा वेबसाइड से डाउनलोड कर सकते हैं।
ऐप डाउनलोड के पश्चात अपनी संपूर्ण जानकारी भरकर अपनी प्रोफाइल बनाएं। इसके बाद संकल्प की तिथि व समय का चयन करें। फिर इसे समिट करें। इसके उपरांत संकल्प विधि संपन्न करवाने वाले पुजारी जी की संपूर्ण जानकारी आपको प्रदान की जाएगी।
तत्पश्चात संकल्प शुल्क राशि 250 रुपये पुजारी जी को आप आनलाइन- गूगल पे, पेटीएम, फोन पे, बैंक खाते में आदि द्वारा भुगतान कर सकते हैं।
फिर निश्चित तिथि व समय पर पुजारी जी आनलाइन वीडियो काल कर संकल्प विधि पूर्ण करवाएंगे।
इसके बाद संकल्पित गंगाजल व प्रसाद आपके द्वारा दिये गये पते पर कोरियर द्वारा भेज दिया जाएगा। कोरियर का शुल्क का भुगतान आपको कोरियर प्रदाता को नगद देना होगा।
श्रावण माह में शिवभक्त अपने निवास स्थान से कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए हरिद्वार, गंगोत्री आदि आते हैं और कांवड़ में गंगाजल भरकर पैदल ही अपने निवास स्थान आते हैं और यहां स्थित देवस्थान में भवागन शिव को जल अर्पित कर पूजन करते हैं।
सावन के महीने में कांवड़ लाने के पीछे अनेक पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं, जो कांवड़ के महत्व और इतिहास को दर्शाती हैं। मुख्य रूप से यह समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव द्वारा सेवन करने से जुड़ी हुई है।
माना जाता है कि समुद्र मंथन इसी माह में हुआ था और समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था, संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर जलने लगा। तब भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शंकर के शरीर को ठंडक मिली और उन्हें विष से राहत मिली।
कांवड़ के बारे में यह भी माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान शंकर पर चढ़ाया था। तभी से शिवजी पर सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले श्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था।
कुछ विद्वानों का कहना है कि समुंद मंथन से निकले विष को कंठ में धारण करने से भगवान शिव का गला नीला हो गया था, जिसके कारण वे नीलकंठ कहलाए। विष के कारण उनके शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ गए थे। इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति दिलाने के लिए शिवभक्त रावण ने उनकी पूजा-पाठ की और कांवड़ में जल भरकर शिव मंदिर में चढ़ाया, जिससे वे नकारात्मक प्रभाव से मुक्त हुए और तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
इन्हीं मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवड़िए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और आराधना करते हैं।
ई-कांवड़ यात्रा
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। सावन माह बाबा महादेव को बेहद प्यारा है।
इसीलिए इस महीने के आरंभ से ही देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में शिव-भक्त बेहद कठिन मानी जाने वाली कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और कांवड़ में गौमुख, इलाहाबाद, हरिद्वार या गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल लेकर अपने देवस्थान पहुंचकर इस जल को उन पर अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि भोलेनाथ प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
यात्रा दौरान वे कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते। ज्यादातर कांवड़िए केसरी रंग के वस्त्र धारण करते हैं।
कोरोना महामारी के कारण इस सावन ये यात्रा सुरक्षा कारणों से स्थगित की गई है। इस कारण शिव भक्तों की आस्था और परंपरा के निर्वहन के दृष्टिगत उत्तराखंड सरकार ने एक नई पहल करते हुए ई-कांवड़ यात्रा की व्यवस्था की है।
यह यात्रा जहां कोरोना नियमों का पालन करते हुए पूर्ण रूप से सुरक्षित है, वहीं शिव भक्तों की आस्था-भक्ति के अनुरूप है। बस, थोड़ा रूप बदला गया है। सभी शिव भक्त अपने स्थान से ही परंपरा अनुसार शिव की आराधना के पूर्ण पुण्य के भागीदार बन सकेंगे।